Wednesday 2 September 2015




दरबारे औलिआ तेरे दर पे आ गया हूँ, 
जाना तो कहीं और था,तेरे दर पे आ गया  हूँ. 

जिस राह पर चल रहा था, मंझिल की खबर थी नहीं
जिस और जो चल रहा थ. उसका भी न था कोई  गुमां  
अब ईस मेरे सफर में जो मोड़ आ गया है, 
लाया है मुझको तुम तक , मंझिल का भी पता चल गया  है.

दरबारे औलिआ, तेर दर पे आ गया हूँ 
जाना था कहीं और था, तेरे दर पे आ गया हुँ. 

इसका न यक़ीन था मुझे , जो आज पा गया हूँ,
क्या क्या न मैंने खोया, क्या क्या मैं पा गया हूँ  
अब सफर मैं जो भी आये, उसका न कोई डर है,
अब जो भी तू दिलाये, उसमे मेरी बसर है 

दरबारे औलिआ , तेर दर पे आ गया हूँ,
जाना तो कहीं और था, तेरे दर पे आ गया हुँ. 


---------------------गुरु चरणों में.
----------------------------------------------देवीदास क्रत.